सन्नाटा
चलते चलते ठिठक गये तारे
छा गया आसमां पे सन्नाटा
फ़र्शे गुल पे बिछी हुई है नसीम
हमा तन गोश हो गई है रात
खामुशी बन गई है खुद आवाज़
इक समां इन्तिज़ार का सा है
दूर तक हैं मेरे नक़्शे क़दम
रास्तों पर बिछी हुई आँखें
ज़ुल्मतों की कहानियों में चिराग़
दूर तक हैं मेरे ही नक़्शे क़दम
रूह बेचैन है नज़र है उदास
उसके आने की आस है दिल को
जो कभी लौट कर न आएगा
या है बीते हुए दिनों की याद
जो कभी लौट कर नहीं आते
या किसी इन्क़िलाब की तम्हीद
तीरा खामोशियों के पर्दे में
नैयरे अहदे इश्के नौ की किरण
चलते चलते ठिठक गये तारे
हमा तन चश्म हो गया है फ़लक
हमा तन गोश हो गई है ज़मीं
फर्शे गुल पर बिछी हुई है नसीम
इक समां इन्तेज़ार का सा है!
چلتے چلتے ٹھٹک گئے تارے
ReplyDeleteچھا گیا آسماں پہ سناٹا
فرش گل پہ بچھی ہوئی ہے نسیم
ہمہ تن گوش ہو گئی ہے رات
خاموشی بن گئی ہے خود آواز
اک سماں انتظار کا سا ہے
دور تک ہیں میرے نقش قدم
راستوں پر بچھی ہوئی آنکھیں
ظلمتوں کی کہانیوں میں چراغ
دور تک ہیں مرے ہی نقش قدم
روح بے چین ہے نظر ہے اداس
اس کے آنے کی آس ہے دل میں
جو کبھی لوٹ کر نہ آئے گا
یا ہے بیتے ہوئے دنوں کی یاد
جو کبھی لوٹ کر نہیں آتے
یا کسی انقلاب کی تمہید
تیرہ خاموشیوںکے پردے میں
نیر عہد عشق نو کی کرن
چلتے چلتے ٹھٹک گئے تارے
ہمہ تن چشم ہو گیا ہے فلک
ہمہ تن گوش ہو گئی ہے زمیں
فرش گل پہ بچھی ہوئی ہے نسیم
اک سماں انتظار کا سا ہے