Saturday, June 13, 2009

SANNATA


सन्नाटा
चलते चलते ठिठक गये तारे
छा गया आसमां पे सन्नाटा
फ़र्शे गुल पे बिछी हुई है नसीम
हमा तन गोश हो गई है रात
खामुशी बन गई है खुद आवाज़
इक समां इन्तिज़ार का सा है

दूर तक हैं मेरे नक़्शे क़दम
रास्तों पर बिछी हुई आँखें
ज़ुल्मतों की कहानियों में चिराग़
दूर तक हैं मेरे ही नक़्शे क़दम
रूह बेचैन है नज़र है उदास

उसके आने की आस है दिल को
जो कभी लौट कर न आएगा
या है बीते हुए दिनों की याद
जो कभी लौट कर नहीं आते
या किसी इन्क़िलाब की तम्हीद
तीरा खामोशियों के पर्दे में
नैयरे अहदे इश्के नौ की किरण

चलते चलते ठिठक गये तारे
हमा तन चश्म हो गया है फ़लक
हमा तन गोश हो गई है ज़मीं
फर्शे गुल पर बिछी हुई है नसीम
इक समां इन्तेज़ार का सा है!

1 comment:

  1. چلتے چلتے ٹھٹک گئے تارے
    چھا گیا آسماں پہ سناٹا
    فرش گل پہ بچھی ہوئی ہے نسیم
    ہمہ تن گوش ہو گئی ہے رات
    خاموشی بن گئی ہے خود آواز
    اک سماں انتظار کا سا ہے

    دور تک ہیں میرے نقش قدم
    راستوں پر بچھی ہوئی آنکھیں
    ظلمتوں کی کہانیوں میں چراغ
    دور تک ہیں مرے ہی نقش قدم
    روح بے چین ہے نظر ہے اداس

    اس کے آنے کی آس ہے دل میں
    جو کبھی لوٹ کر نہ آئے گا
    یا ہے بیتے ہوئے دنوں کی یاد
    جو کبھی لوٹ کر نہیں آتے
    یا کسی انقلاب کی تمہید
    تیرہ خاموشیوںکے پردے میں
    نیر عہد عشق نو کی کرن

    چلتے چلتے ٹھٹک گئے تارے
    ہمہ تن چشم ہو گیا ہے فلک
    ہمہ تن گوش ہو گئی ہے زمیں
    فرش گل پہ بچھی ہوئی ہے نسیم
    اک سماں انتظار کا سا ہے

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